मंगलवार, 15 फ़रवरी 2011

जन्मदिन ऐसा भी होता है, कभी सोचा न था!


हमरी  माता जी बताती  हैं कि कुछ  पारिबारिक कारन से हमारा छट्ठी बहुत धूमधाम से नहीं मनाया जा सका था. जबकि हम ख़ानदान का पहिला चिराग थे. बात का मलाल उनको एतना हुआ कि कम से कम हमरा जनमदिन घर में बहुत धूमधाम से मनाया जाता रहा. बाद में हम बच्चा नहीं रहे अऊर सब बात बचकाना लगने लगा, बस जनमदिन का मतलब एकदम घर का उत्सब होकर रह गया.
लेकिन साल हमको खुद बिस्वास नहीं हुआ कि एतना चाहने वाला लोग है हमको. जेतना चाहने वाला ओतने बधाई अऊर हमरे लिये ओतने खुसी का बात. लगा जईसे आज जाकर पैदा होना सफल हुआ. लेकिन सारा दिन हमरे आँख से जो आँसू का धार बहा है सायद थमा नहीं. खुसी के आँसू का स्वाद खारा नहीं होता है, हमको ओही दिन समझ में आया.
संजय जी (मो सम कौन) अऊर सिवम मिश्रा जी ऑनलाईने थे अऊर बारह बजते सबसे पहले बधाई दे गये. हमरी एगो  छोटी बहन अपना सहर में नहीं थी, लेकिन राते में रोक्सी से बधाई पहुँचा दी. सिवम मिश्रा जी राते में एगो पोस्ट लगा दिये हमरे जनमदिन का खुसी में, साथ में हमरा फोटो भी. खाली गलती एही कर गये कि हमरे जईसा भेजिटेरियन आदमी के लिये अण्डा वाला केक लगा दिये थे.
सबेरे सबेरे हमारे चाचा जी का मेसेज आया फेसबुक पर.तुम्हारे जनमदिन पर याद गया तुम्हारा पहला जनमदिन, जब तुम्हारी नानी ने तुम्हारे लिये हाथ से सिली हुई टोपी भेजी थी और जब तुम्हें हम टोपी पहनाते थे, तुम वो हटा देते थे. फिर हम तुम्हें रूपा स्टुडियो फोटो खिंचवाने ले गए. कमाल था कि जब तक फोटो नहीं खिंच गया, तुमने वो टोपी नहीं हटाई. कमाल का सेंस था तुम्हारा  बचपन से ही. मुझे तभी पता चल गया था कि ईश्वर ने तुम्हें अद्भुत स्टैबिलिटी दी है. खुश रहो! हमरा   आँख से आँसू बरसने लगा. चाचा जी को फोन किये अऊर आशीर्बाद लिये.
फेसबुक पर देखे तो बहुत सा बधाई था. अऊर उसी में स्वप्निल का नज़्मसलिल सर के जन्मदिन पर... चैतन्य बाबू को फोन लगाये अऊर बोले कि नज़्म हमको मेल करो. जब नज़्म मिला तो चैतन्य बाबू बोले कि पढ़कर सुनाओ अगर हिम्मत है तो. पढ़ना सुरू किये मुस्कुराकर मगर अंतिम तक आते आते गला बंद हो गया. ऑफिस में थे. लोग देख ले इसलिये मुँहधोने चले गये. अपने पचास साल के जिन्न्गी में एतना सुंदर तोहफा नहीं मिला कभी. अजीब रिस्ता का अनुभव कर रहे थे हम. सोच भी नहीं पा रहे थे कि हम इसके लायक भी हैं कि नहीं.
फेसबुक पर एगो दोस्त हैं हमारे. रवींद्र कुमार शर्मा. उनके गजल का एगो शेर बहुत पसंद आया था मगर पूरा गजल नहीं सुने थे अभी. शेर था
तुम्हारे शहर में सावन का मतलब सिर्फ सीलन है,
यहाँ बरसात में खुशबू नहीं आती मकानों से.
उनसे माँग लिये कि हमको आज एगो गिफ्ट के रूप में पूरा गजल दे दीजिये. अऊर कमाल कि तुरत पूरा गजल फेसबुक पर लगा दिये. ओही गजल का एग अऊर शेर देखिये
फिरकनी, कागजों की चूड़ियाँ, हामिद का वो चिमटा
ये चीज़ें अब कहाँ मिलती हैं इन ऊंची दुकानों से.
आँख भर आया फिर अऊर लगा कि यार हम आज सेलेब्रिटि होते जा रहे हैं.  इधर ब्लॉग पर बधाई का आलम था कि एक एक आदमी का 12/13 कमेंट छप रहा था.एतना लोग का बधाई मिला कि लगा कि हमरा झोली कम पड़ रहा है.
रात में जब पूरा परिबार, भाई, माता जी, दुलहिन सब एकट्ठा हुई हमरी बड़की बेटी चुपके से हमरे लिये बहुत सुंदर पेन लाकर दी और एगो बहुत सुंदर कोटेशन. पहिला बार अपना पॉकेट मनी से पईसा बचाकर हमरे लिये गिफ्ट लाई थी. अऊर जब हम गिफ्ट हाथ में लिये हमरा आँसू टप्टप बह रहा था. डैडी आप रो क्यों रहे हैं, बेटी पूछी. हम धीरे से उसके माथा को चूम लिये.
पोस्ट लिखने का सिर्फ एक्के कारन है कि सारा लोग, जो हमको एतना बधाई अऊर आसीर्बाद दिया है, उनका आभार ब्यक्त कर सकें.
सचमुच आप लोग के वजह से पैदा होने का मजा दुगुना हो गया!!

5 टिप्‍पणियां:

  1. इस पोस्ट को टिप्पणी के उद्देश्य से नहीं, बल्कि आपके प्रति अपना आभार प्रकट करने के लिये लिखा है.. इसलिये टिप्पणी बॉक्स बंद करना पड़ा है!!

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  2. उस दिन टिप्पणी बोक्स न देख कर अच्छा नहीं लगा था.विवरण बढ़िया है.बहुत-बहुत बढ़ायी.

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  3. itni bhawbhini baaten likhi hai aapne,padhkar bahut achcha laga.bhawnayen wakayee anmol hoti hain.

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  4. आपका उद्देश्य कोई भी हो ....
    हमारा उदेश्य तो आपको जनम दिन की मुबारकबाद देना है ...

    HAPPY BIRTHDAY ...

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  5. आपके आगामी जीवन के लिए लाखों दुआएं |

    लेकिन एक बात हमको समझ में नहीं आता कि इस पोस्ट पर एतना कम कमेन्ट कैसे ??

    सादर

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